ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने 10 गांवों के किसानों से जमीन खरीद कर लैंड बैंक बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन किसानों के विरोध के चलते यह योजना वापस लेनी पड़ी। प्राधिकरण ने इन गांवों में उद्योग लगाने के लिए जमीन खरीदने की घोषणा की थी। इसके लिए समाचार पत्रों और अपनी वेबसाइट पर विज्ञापन भी प्रकाशित किए थे। योजना के तहत 1 जुलाई से 9 जुलाई तक गांवों में कैंप लगाकर जमीन खरीदने का कार्यक्रम निर्धारित किया गया था, लेकिन प्राधिकरण के सपने पूरे नहीं हो सके।
पहले ही दिन फेल हुआ अभियान
इस योजना की शुरुआत 1 जुलाई को खेड़ी गांव से की गई। जैसे ही किसानों को कैंप लगाने की सूचना मिली, किसान नेता डॉक्टर रूपेश वर्मा सैकड़ों किसानों के साथ वहां पहुंच गए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। किसानों ने जमकर नारेबाजी की और प्राधिकरण की टीम को कैंप नहीं लगाने दिया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस भी मौके पर पहुंच गई, लेकिन किसानों के भारी विरोध के चलते पुलिस और प्राधिकरण की टीम को बिना कैंप लगाए ही वापस लौटना पड़ा।
किसान इसलिए नहीं दे रहे जमीन
अगले दिन भी किसानों ने कैंप लगाने का विरोध किया। किसानों का कहना है कि प्राधिकरण जमीन का बेहद कम दर से खरीदना चाहता है, जबकि बाजार में जमीन की कीमत 20,000 से 30,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर है। किसान किसी भी कीमत पर इस रेट से कम जमीन देने को तैयार नहीं हैं।
किसानों की मांग क्या है?
प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि इच्छुक किसान प्राधिकरण में आकर अपनी जमीन की फाइल जमा कर सकते हैं और मुआवजा प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन किसानों पर यह प्रस्ताव असरदार साबित नहीं हो रहा है। किसानों का कहना है कि जब प्राधिकरण अपनी जमीनों को 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से बेचता है तो फिर किसान अपनी जमीन सस्ते में क्यों बेचें।
वापस लिया प्राधिकरण ने फैसला
किसान नेता सुनील फौजी का कहना है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अगर नए जमीन अधिग्रहण कानून के तहत सर्किल रेट का चार गुना मुआवजा देता है तो किसान अपनी जमीन देने के लिए तैयार हैं, लेकिन कम कीमत पर जमीन देने के लिए वे बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। इस विरोध के कारण प्राधिकरण को गांवों में जमीन खरीदने की अपनी योजना फिलहाल रोकनी पड़ी है। अधिकारियों का कहना है कि इस मामले पर पुनर्विचार किया जाएगा और किसानों की मांगों को ध्यान में रखते हुए उचित कदम उठाए जाएंगे।