सारांश: सिक्के का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। इसके उद्भव ने व्यापार और अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाए। इस लेख में हम सिक्के के चलन के महत्वपूर्ण पड़ावों पर एक नजर डालेंगे।मुख्य लेख:सिक्के का चलन मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। प्राचीन काल में जब व्यापार की शुरुआत हुई, तब वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए वस्तु-विनिमय प्रणाली का उपयोग किया जाता था।
लेकिन जैसे-जैसे समाज और व्यापार का विस्तार हुआ, वस्तु-विनिमय प्रणाली जटिल होती गई और एक नई प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई।प्रारंभिक काल:सिक्कों का सबसे पहला ज्ञात उपयोग लगभग 600 ईसा पूर्व में लिडिया (वर्तमान तुर्की ) में हुआ था। यहां के राजा एलाइड्स ने पहली बार इलेक्ट्रम (सोने और चांदी का मिश्रण) के सिक्के ढाले थे। इन सिक्कों का उपयोग स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में किया जाने लगा।भारत में सिक्कों का चलन:भारत में, सिक्कों का प्रारंभिक चलन महाजनपद काल (लगभग 600-300 ईसा पूर्व) में शुरू हुआ। सबसे पहले पंचमार्क सिक्के प्रचलित हुए, जो चांदी के होते थे और जिन पर विभिन्न प्रतीक और चिह्न बनाए जाते थे। मौर्य साम्राज्य (324-185 ईसा पूर्व ) के दौरान, चंद्रगुप्त मौर्य और उनके उत्तराधिकारियों ने व्यवस्थित रूप से सिक्कों का प्रचलन किया।
अशोक महान के समय में, सिक्कों पर धम्म चक्र और अन्य बौद्ध प्रतीकों की मुहरें अंकित होती थीं।मध्यकालीन और आधुनिक काल:मध्यकालीन काल में दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य ने सोने, चांदी और तांबे के सिक्कों का व्यापक उपयोग किया। अकबर के शासनकाल में तोलार और रुपया जैसे सिक्के चलन में आए।
ब्रिटिश शासन के दौरान, आधुनिक भारतीय रुपया प्रचलित हुआ, जिसने पूरे उपमहाद्वीप में एक एकीकृत मुद्रा प्रणाली स्थापित की।निष्कर्ष:सिक्के का चलन न केवल व्यापार के साधन के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण रहा है। आज भी, सिक्के इतिहास और पुरातत्त्व के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो हमें प्राचीन समाजों और उनकी अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।